सात वचन

पहले फेरे में कन्या वर से कहती हैयदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना. कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें. यह पहला वचन पति व पत्नी के साथ होने का संदर्भ बताता है. वैज्ञानिक रूप से भी वर-वधू का एक दूसरे के साथ होना आवश्यक है. यह वैवाहिक जिंदगी को सुखमय व खुशहाल बनाने के लिए लाभदायक माना जाता है.

 

दूसरा वचन:       दूसरे वचन में कन्या वर से वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं. यदि इस वचन के वैज्ञानिक अर्थ की बाते करें तो यह वचन सबको एक बंधन में बांधता है. आज के समय में लोगों में छोटी-छोटी बातों को लेकर मन-मुटाव काफी तीव्रता से उत्पन्न होता है जिस कारण रिश्ते बिगड़ते हैं. यह वचन पति-पत्नी को मानसिक रूप से रिश्तों को संजोने में मदद करता है.

 

तीसरा वचन:       तीसरे वचन में कन्या वर से यह मांगती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे, पल-पल मेरा साथ निभाएंगे. विवाह के इस वचन से पति-पत्नी सभी अवस्थाओं में एक-दूसरे के लिए प्रेरणा का स्रोत बनते हैं. इससे दोनों के मन व मस्तिष्क में वैवाहिक जीवन को लेकर जिम्मेदारियों का एहसास उत्पन्न होता है.

 

चौथा वचन:     विवाह के चौथे वचन में कन्या यह माँगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिन्ता से पूर्णत: मुक्त थे. अब जबकि आप विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है. विवाह का यह चौथा वचन वर व वधू के विकास का प्रतीक है. वे दोनों शारीरिक व मानसिक दोनों रूप से जीवन में आगे बढ़ने के लिए सक्षम बनते हैं. इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उतरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृ्ष्ट करती है.

 

पांचवा वचन:    शादी के पांचवें वचन में कन्या वर से कहती है कि वो अपने जिंदगी के सभी कार्यों में अपनी पत्नी को भी स्थान दे. वो कहती है कि अपने घर के कार्यों में, विवाहादि, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मन्त्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं. इस वचन में वर-वधू अपने वैवाहिक जीवन में अपने व्यक्तिगत अधिकारों को रेखांकित करते हैं. यहां पत्नी पति को अपनी अहमियत बताना चाहती है और यह समझाती है कि अब से उसके जीवन से जुड़ी हर एक बात में वो बराबर की हिस्सेदार है.

 

छठा वचन:   इस वचन में कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्त्रियों के बीच बैठी हूं तब आप वहां सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे. यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आप को दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस वचन में गम्भीर अर्थ समाहित हैं. विवाह पश्चात कुछ पुरुषों का व्यवहार बदलने लगता है. वे जरा-जरा सी बात पर सबके सामने पत्नी को डांट-डपट देते हैं. ऐसे व्यवहार से पत्नी का मन कितना आहत होता होगा. यहां पत्नी चाहती है कि बेशक एकांत में पति उसे जैसा चाहे डांटे किन्तु सबके सामने उसके सम्मान की रक्षा की जाए, साथ ही वो किन्हीं दुर्व्यसनों में फँसकर अपने गृ्हस्थ जीवन को नष्ट न कर ले.

 

सातवां वचन: विवाह के अन्तिम व सातवें वचन में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगे और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगे. विवाह पश्चात यदि व्यक्ति किसी बाहरी स्त्री की ओर आकर्षित हो जाए तो दोनों के वैवाहिक जीवन पर आंच आ सकती है. इसलिए इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है.

 

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